Wednesday, January 5, 2011

सरकती जाये है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता

सरकती जाये है, रुख़ से नक़ाब, आहिस्ता आहिस्ता,
निकलता आ रहा है, आफ़ताब आहिस्ता आहिस्ता ।

जवां होने लगे जब वो, तो हमसे कर लिया पर्दा,
हया यक़लख़्त आई, और शबाब आहिस्ता आहिस्ता ।

सवाल-ए-वस्ल पे उनको, उदू का खौफ़ है इतना,
दबे होंठों से देते हैं, जवाब आहिस्ता आहिस्ता ।

हमारे और तुम्हारे प्यार में, बस फ़र्क है इतना,
इधर तो जल्दी-जल्दी है, उधर आहिस्ता आहिस्ता ।

शब-ए-फुरक़त का जागा हूँ, फ़रिश्तों अब तो सोने दो,
कभी फ़ुर्सत में कर लेना, हिसाब आहिस्ता आहिस्ता ।

वो बेदर्दी से सर काटें ‘अमीर’, और मैं कहूँ उनसे,
हुज़ूर आहिस्ता आहिस्ता, जनाब आहिस्ता आहिस्ता ।

Lyricist : Ameer Meenai

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