Friday, May 25, 2012

जिंदगी यूँ हुई बसर तन्हा


जिंदगी यूँ हुई बसर तन्हा
काफिला साथ और सफ़र तन्हा

अपने साये से चौक जाते हैं
उम्र गुजरी है इस कदर तन्हा

रात भर बोलते हैं सन्नाटे
रात काटे कोई किधर तन्हा

दिन गुजरता नहीं है लोगों में
रात होती नहीं बसर तनहा

हमने दरवाजे तक तो देखा था
फिर न जाने गये किधर तन्हा

Lyricist : Gulzar

शाम से आँख में नमी सी है


शाम से आँख में नमी सी है
आज फिर आपकी कमी सी है

दफ्न कर दो हमे की सांस मिल
नव्ज कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर
इसकी आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी
एक तस्लीम लाजमी सी है

Lyricist : Gulzar

वो ख़त के पुरजे उड़ा रहा था


वो ख़त के पुरजे उड़ा रहा था
हवाओं का रुख दिखा रहा था

कुछ और भी हो गया नुमाया
मैं अपना लिख्खा मिटा रहा था

उसी का ईमां बदल गया है
कभी जो मेरा खुदा रहा था

वो एक दिन एक अजनबी को
मेरी कहानी सुना रहा था

वो उम्र कम कर रहा था मेरी
मैं साल अपने बढ़ा रहा था

Lyricist : Gulzar

एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी


एक पुराना मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी
ऐंसा तो कम ही होता है वो भी हों तन्हाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती है
कितनी सौंधी लगती है तब माझी की रुसवाई भी

दो दो शक्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में
मेरे साथ चला आया है आपका इक सौदाई भी

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है
उनकी बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी

Lyricist : Gulzar

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते


हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छूटा करते
वक़्त की साख से लम्हे नहीं तोडा करते

जिसकी आवाज में सिलवट हो, निगाहों में सिकन
ऐंसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते

शहद जीने का मिला करता है थोडा थोडा
जाने वालों के लिए दिल नहीं थोडा करते

लगके शाहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐंसे दरिया का कभी रुख नहीं मोड़ा करते

Lyricist : Gulzar

Thursday, May 24, 2012

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को खबर न हो


कभी यूँ भी आ मेरी आँख में कि मेरी नज़र को खबर न हो
मुझे एक रात नवाज दे मगर उसके बाद सहर न हो

वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है मुझे ये शिफत भी अता करे
तुझे भूलने की दुआ करूँ तो दुआ में मेरी असर न हो

कभी दिन की धुप में झूम के कभी शब् के फूल को चूम के
यूँ ही साथ साथ चलें सदा कभी ख़त्म अपना सफ़र न हो

मेरे पास मेरे हबीब आ जरा और दिल के करीब आ
तुझे धडकनों में बसा लूं मैं कि बिछड़ने का कभी डर न हो


Lyricist : Bashir Badr

ऐंसे हिज्र के मौसम कब कब आते है


ऐंसे हिज्र के मौसम कब कब आते है
तेरे अलावा याद हमे सब आते हैं

जागती आँखों से भी देखो दुनिया को
ख़्वाबों का क्या है वो हर शब् आते हैं

अब वो सफ़र की ताब नहीं बाक़ी वरना
हम को बुलावे दश्त से जब-तब आते हैं

काग़ज़ की कश्ती में दरिया पार किया
देखो हम को क्या-क्या करतब आते हैं

Lyricist : Shahryar