Friday, December 31, 2010

ये ज़िन्दगी...

ये ज़िन्दगी...
आज जो तुम्हारे बदन की, छोटी-बड़ी नसो में मचल रही है,
तुम्हारे पैरों से चल रही है ।
ये ज़िन्दगी...

तुम्हारी आवाज़ में गले से निकल रही है,
तुम्हारे लफ़्ज़ो में ढ़ल रही हैं ।
ये ज़िन्दगी,

जाने कितनी सदियों से यूँ  ही शक़्ले बदल रही है,
ये ज़िन्दगी,

बदलती शक़्लें, बदलते जिस्मों, में चलता फ़िरता ये इक शरारा,
जो इस घड़ी नाम है तुम्हारा,
इसी से सारी चहल-पहल है,
इसी से रौशन है हर नज़ारा,
सितारे तोड़ो या घर बसाओ,
कलम उठाओ या सर झुकाओ,
तुम्हारी आँखों की रौशनी तक है, खेल सारा,
ये खेल होगा नहीं दुबारा ।

Lyricist : Nida Fazli

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