Friday, December 31, 2010

जीवन क्या है चलता फिरता एक ख़िलौना है

जीवन क्या है, चलता फिरता एक ख़िलौना है,
दो आँखों में, एक से हसँना, एक से रोना है ।

जो जी चाहे, वो मिल जाए, कब ऐंसा होता है,
हर जीवन, जीवन जीने का, समझौता है,
अब तक जो, होता आया है, वो ही होना है ।

रात अन्धेरी, भोर सुनहरी, यही ज़माना है,
हर चादर में, सुख का ताना, दुख का बाना है,
आती साँस को पाना, जाती साँस को खोना है ।

दो चहरों से, जीना भी, कैसी मजबूरी है,
जितना जो, नज़दीक है, उससे उतनी दूरी है,
फूलों के सपने लेकर, काटों पर सोना है ।

दूर पहाड़ी, के पीछे जब, सूरज ढ़लता है,
परछाई जैसा कोई, सांसो में चलता है,
भूली बिसरी यादों को, अश्क़ो से धोना है ।

Lyricist : Nida Fazli

No comments:

Post a Comment