सच ये है बेकार हमे गम होता है,
जो चाहा था दुनिया में कम होता है |
ढलता सूरज फैला जंगले रस्ता गुम,
हमसे पूछो कैसा आलम होता है |
गैरों को कब फुरसत है दुःख देने की ,
जब होता है कोई अपना होता है |
ज़ख्म तो हमने इन आँखों से देखें हैं,
लोगों से सुनते हैं मरहम होता है |
Lyricist : Javed Akhtar
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