Thursday, December 30, 2010

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी

हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी, 
फिर भी तन्हाइयों का शिकार आदमी... 

सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ 
अपनी ही लाश का खुद मजार आदमी ... 

हर तरफ भागते दौड़ते रास्ते 
हर तरफ आदमी का शिकार आदमी... 

रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ 
हर नये दिन नया इंतज़ार आदमी... 

जिंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र 
आखरी सांस तक बेकरार आदमी... 


Lyricist : Nida Fazli

No comments:

Post a Comment