Wednesday, December 29, 2010

मिली हवाओं में उड़ने की वो सजा यारों


मिली हवाओं में उड़ने की वो सजा यारों 
की मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों 


वो बे-ख्याल मुसाफिर, मैं रास्ता यारों 
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों 


मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी 
के अपने बारे में कुछ भी न लिख सका यारों 


तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था 
मैं उसके घर का पता किस से पूछता यारों 

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