लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ हैं,
इतना ड़रते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं ।
मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं ।
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसो से,
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं ।
मोड़ होता हैं जवानी का सम्भलने के लिये,
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं ।
Lyricist : Rahat Indori
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