Sunday, January 23, 2011

लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ हैं


लोग हर मोड़ पे रूक रूक के संभलते क्यूँ हैं,
इतना ड़रते हैं तो फिर घर से निकलते क्यूँ हैं ।

मैं ना जुगनू हूँ दिया हूँ ना कोई तारा हूँ,
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यूँ हैं ।

नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसो से,
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूँ हैं ।

मोड़ होता हैं जवानी का सम्भलने के लिये,
और सब लोग यहीं आ के फिसलते क्यूँ हैं ।

Lyricist : Rahat Indori

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